Thursday, September 18, 2008

समाचारः परिभाषा

सामाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य समाज के परिवेश के संदर्भ में, निरंतर कुछ जानते रहने की भावना रखता है। इसी भावना ने ही मनुष्य की ज्ञान प्राप्ति के प्रति भूख को जागृत किया है। जानने की यह भूख ही मनुष्य के भीतर इसीलिए पैदा हुई है कि वह एक सामाजिक प्राणी है। जानकारी प्राप्त करने से ही मनुष्य अपने अहम से मुक्त होकर अपने को समाज से जोड़ पाता है। दूसरे अर्थों में जानकारी का नाम ही समाचार है।
समाचार को अंग्रेजी में 'न्यूज' कहते हैं। कभी सोचा आपने कि 'न्यूज' को न्यूज कयों कहा जाता है- शायद इसलिए कि समाचार को हमेशा 'न्यू' यानि नया होना चाहिए। यूं भी हो सकता है कि नार्थ, ईस्ट, वैस्ट और साउथ (उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण) चारों दिशाओं से समाचार आते हैं, इसलिए इनके आद्याक्षरों को लेकर 'न्यूज' शब्द की रचना हुई हो।
'न्यूज' या 'समाचार' की क्या परिभाषा है? इसका उत्तर अपने-अपने ढंग से कई विद्वानों ने दिया है।
विभिन्न विद्वानों द्वारा समाचार को परिभाषित करने के प्रयास के बावजूद अभी तक किसी एक परिभाषा को ही समाचार की सम्पूर्ण और सटीक परिभाषा नहीं माना जा सकता।
समाचार की कुछ प्रचलित परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं.....

- कोई भी ऐसी घटना जिसमें मनुष्य की दिलचस्पी है, समाचार है।
- पाठक जिसे जानना चाहता है वह समाचार है, शर्त यह है कि वह सुरुचि तथा प्रतिष्ठा के नियमों का उल्लंघन न करे। ........ जे। जे। सिंडलर

- अनेक व्यक्तियों की अभिरुचि जिस सामयिक बात में हो वह समाचार है। सर्वश्रेष्ठ समाचार वह है जिसमें बहुसंख्यकों की अधिकतम रुचि हो। ........ प्रो. विलियम जी. ब्लेयर

शिकागो के दो पत्रकार हार्पर और जॉन सी कैरोल ने अपनी पुस्तक का आरंभ इस वाक्य से किया था....
समाचार अति गतिशील साहित्य है। समाचार-पत्र समय के करघे पर बेलबूटेदार कपड़े को बुनने वाले तकुए हैं।

कुछ अन्य परिभाषाएं....
- समाचार किसी अनोखी या असाधारण घटना की अविलंब सूचना को कहते हैं, जिसके बारे में लोग प्रायः पहले कुछ न जानते हो, लेकिन जिसे तुरंत ही जानने की अधिक से अधिक लोगों में रुचि हो।
- पाठक जिसे जानना चाहे, वह समाचार है।
- जिसे अच्छा सम्पादक प्रकाशित करना चाहे वही समाचार है।
- समाचार घटना का विवरण है। घटना स्वयं में समाचार नहीं।

इसी तरह 'समाचार' शब्द की कई अर्थों में व्याख्या की जा सकती है लेकिन सच्चाई यह है कि साहित्य, दर्शन, भक्ति, राजनीति, युद्ध, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, खेलकूद, व्यापार, खेतीबाड़ी, विज्ञान, कानून, प्रशासन अपराध आदि जितने भी विषय हैं, इन सभी विषयों से ही समाचार की सृष्टि होती है और तभी समाचार ज्ञान के आधार-स्तंभ बनते हैं। समाचारों के कारण पत्रकारित का शक्ति का निरंतर विकास होता गया है।
पत्रकारिता समाचारों के कारण ही जनमानस की सही अभिव्यिक्ति का आधार-स्तंभ बनी है। इसी अनुभव को स्वर देते हुए रुडयार्ड किपंलिंग ने कहा था: "बड़े-बड़े राजसिंहासन और शक्तिशाली वर्ग यह जानते हैं और अनुभव करते हैं कि दंभ और अभिमान के और दर्प के जितने बच्चे हैं, उन सबका शासक और प्रभु एकमात्र प्रेस है। आज उसे दंभियों की बुद्धि ठिकाने लगाने को और प्रमादियों को होश प्रदान करने के लिए जीवित रहना है। निर्बलों की रक्षा करने के लिए और अंधविश्वासियों की आंखें खोलने के लिए और निर्भय होकर सत्य का समर्थन व अन्याय का प्रतिरोध करने के लिए, कायरों को बल और अज्ञानियों को जीवन के हर पहलू में नवज्योति प्रदान करने के लिए समाचार-पत्रों को जीवित रहना है।"

1 comment:

Sanju Paul said...

VERY INTERESTING AND USEFUL BLOG